Beetroot Cultivation in Hindi

चुकंदर की खेती – सम्पूर्ण जानकारी Beetroot Cultivation in Hindi

Beetroot Cultivation in Hindi – ब्लड बूस्टर और भारतीय कृषि उद्योग में सबसे प्रसिद्ध खेती चुकंदर की खेती है जो की बड़े पैमाने पर की जाती है। बाजार में हमेशा चुकंदर की बहुत ज्यादा डिमांड रहती है और डॉक्टर भी चुकंदर खाने की सलाह देते हैं। इसीलिए इसकी डिमांड हमेशा बनी रहती है। चुकंदर खेती का एक अच्छा विकल्प है, जो किसान की आय में बढ़ोतरी कर सकता है और इसकी कृषि करना भी आसान है।

चुकंदर की खेती किसान किसी भी जलवायु, उच्चतम व न्यूनतम तापमान वाले इलाकों में कर सकता है और इसकी खेती करने में कम लागत और अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। चुकंदर में मुख्यतः आयरन, पोटेशियम, विटामिन सी, फोलेट, एफडीए आदि पोषक तत्व पाए जाते हैं। जो कि बहुत ज्यादा लाभदायक होते हैं, इसलिए डॉक्टर हमें चुकंदर खाने की सलाह देते हैं।

भारत में चुकंदर की खेती Beetroot cultivation in India

भारत के कई क्षेत्रों में चुकंदर की खेती (Beetroot Cultivation in Hindi) बहुत बड़े पैमाने पर की जाती है और अधिक उत्पादन प्राप्त किया जाता है। भारत में मुख्यतः चुकंदर की खेती (Beetroot cultivation in India) उत्तर, पश्चिम, दक्षिण भारत में की जाती है। उत्तर भारत में मुख्यतः उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, और हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों में बड़े पैमाने पर चुकंदर की खेती की जाती है। इसके अलावा पश्चिम भारत में गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, और तमिलनाडु आदि राज्यों में चुकंदर की खेती करी जाती है।

भारत में सबसे ज्यादा चुकंदर की खेती (Beetroot cultivation in India) उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात आदि राज्यों में करी जाती हैं यह चुकंदर उत्पादन के लगभग 70% भाग का निर्माण करते हैं। चुकंदर की खेती के लिए अनुकूल वातावरण और उचित मौसम व्यवस्था होना आवश्यक है। इसलिए इसे कुछ सीमित क्षेत्रों में ही उगाया जाता है। इसके अलावा इसकी खेती को करने में बहुत कम खर्चा आता है और भारत में लगभग 8 से 10% हिस्से पर चकुंदर की खेती करी जाती है।

चुकंदर का इतिहास

यदि हम चुकंदर के इतिहास को खोले तो इसका  इतिहास बहुत ही प्राचीन है। इसके पुराने समय से ही चुकंदर का उपयोग उपयोग खाद्य पदार्थ और चिकित्सा के क्षेत्र में होते आ रहा है। चुकंदर का उल्लेख भारतीय पुराणों वेदों आदि में भी मिलता है। इससे यह सिद्ध होता है कि इसका इतिहास काफी पुराना रहा है। भारतीय प्राचीन ग्रंथो में इसका नाम ‘राजा सृष्टि’ या ‘रत्न सृष्टि’ के रूप में उल्लेखित है।

चुकंदर की खेती कैसे करें

यदि आप भी चुकंदर की खेती करना चाहते हो, तो आपको नीचे दि गई प्रक्रिया को ध्यान से पढ़ना है। इसमें हमने खेत की तैयारी से लेकर इसकी कटाई तक कि संपूर्ण जानकारी साझा करी है। जिससे आपको चुकंदर की खेती के बारे में हर एक जानकारी प्राप्त होगी और आप आसानी से इसकी खेती कर सकोगे ।

खेत की तैयारी

चुकंदर की खेती (Beetroot cultivation) करने के लिए खेत की तैयारी करना बहुत ही महत्वपूर्ण है, खेत की तैयारी करने के लिए आपको उचित मिट्टी एवं जलवायु का ध्यान रखना पड़ता है। ताकि चुकंदर की अधिक उत्पादन करा जा सके, मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में द्रव्यमान, पीएच, पोषक तत्व (कार्बन नाइट्रोजन) आदि  होने चाहिए. पहले जुताई के समय गहरी जुताई करें एवं जुताई से पूर्व गोबर खाद का उपयोग करें, जिससे मिट्टी की उर्वरा क्षमता में वृद्धि हो, उसके बाद 30 से 40 सेमी की दूरी वाली उचित क्यारियां बनाएं, जिसके बाद आप उसमें बीज डाल सके।

उपयुक्त मिट्टी

चुकंदर की खेती (Beetroot cultivation) करने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाली मिट्टी का चयन करना आवश्यक है। इसके लिए आपको निम्न पहलुओं को ध्यान देने की आवश्यकता है।

1). द्रव्यमान

चुकंदर की खेती के लिए उचित द्रव्यमान वाली मिट्टी होनी चाहिए, अर्थात मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में कार्बन, पोटेशियम, नाइट्रोजन आदि पोषक तत्व मौजूद होने चाहिए।

2). ड्रेनेज क्षमता

चुकंदर की खेती करने के लिए अच्छी ड्रेनेज क्षमता वाली मिट्टी का चुनाव करें, ध्यान रहे पानी के बहाव के कारण मिट्टी का जमाव नहीं होना चाहिए।

3). पीएच (pH)

चुकंदर की खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6 से 7.5 तक होना चाहिए, इससे अधिक पीएच मान वाली मिट्टी को नजरअंदाज करें।

4). कीटनाशक मिट्टी

मिट्टी में कीटनाशकों का उचित प्रबंध होना चाहिए ताकि रोगों और कीड़ों का प्रकोप ज्यादा ना हो।

मौसम एवं जलवायु

चुकंदर की खेती के लिए मौसम एवं जलवायु संतुलित रहना बहुत आवश्यक है। इसके लिए आपको उचित तापमान एवं उचित वर्षा वाले इलाकों का चयन करना चाहिए । निम्न दिये गए पहलुओं को समझे,

1). तापमान

अच्छी उत्पादकता और पौधों की अच्छी ग्रोथ के लिए तापमान लगभग 15 से 25 डिग्री सेल्सियस के मध्य होना चाहिए, जिससे चुकंदर का उत्पादन अच्छे से हो।

2). वर्षा

चुकंदर की खेती के लिए उचित वर्षा का होना आवश्यक है, जो फसल में पानी की कमी को पूरा करें।

उचित वर्षा चुकंदर की खेती को अच्छे से पोषित करती है।

3). जल

चुकंदर की खेती के लिए सुखे के प्रति अच्छे से संवेदनशीलता रखें। चुकंदर के पौधे को जल की आपूर्ति करने का समय मिले।

बीज की मात्रा

चुकंदर की खेती करने के लिए सबसे पहले जुताई करके क्यारियां बनाए एवं क्यारियों को उचित दूरी पर बनाएं, चुकंदर की खेती करने के लिए अच्छी गुणवत्ता एवं बड़े आकार के बीजों का चयन करें, जिससे चुकंदर का उत्पादन अधिक हो। बड़े आकार के बीजों के कारण रोपण में सुविधा रहती है।

बुवाई के लिए बनाई गई क्यारियों के ऊपर बीज को थोड़ा-थोड़ा बिखर देवें , इसके अलावा आप बीज को 20 से 30 सेंटीमीटर दूरी पर बुवाई भी कर सकते हैं। प्रति एकड़ के हिसाब से चुकंदर के बीज की मात्रा 8 से 10 किलोग्राम पर्याप्त रहती है। परंतु यह बीज की रोपाई एवं क्षेत्र के हिसाब से भिन्न हो सकती है, या फिर आपको इससे ज्यादा बीज की आवश्यकता पड़े।

चुकंदर की उन्नत किस्मे

किसी भी प्रकार की खेती करने के लिए उन्नत किस्मों का होना बहुत आवश्यक है। यदि आप उन्नत किस्मों का चयन करते हो, तो आपकी उत्पादकता में बढ़ोतरी होती है। उन्नत किस्में मौसम, जलवायु तथा मिट्टी के अनुसार तय की जाती है। चुकंदर की उन्नत किस्मों को 3 भागों में वर्गीकृत किया गया है, जो कि निम्न है

1). खारी किस्में

अधिक उत्पादकता वाली यह किस्में चुकंदर की खेती (Beetroot cultivation) के लिए सर्वोत्तम विकल्प है। खारी किस्में मुख्यतः मिट्टी, देलता, एना, एल्बा, बिकानीर आदि प्रकार की होती है।

2). उत्तम किस्म

उत्तम किस्में बेहतर स्वाद और उच्चतम पोषण के कारण जानी जाती है। इन किस्मों में मुख्यतः गोल्डन, एटलांटिक, बोल्टन आदि सम्मिलित है।

3). उदार किस्में

अधिक जलनाशक और टिकाऊ क्षमता वाली उदार किस्मों में मुख्यतः यूनिवर्सल, जेनसीस, टाफी, टाफनी, एक्स्प्रेस आदि प्रकार की किस्में शामिल है।

बुवाई का समय और विधि

फरवरी से अप्रैल महीने के बीच चुकंदर की बुवाई करना उचित रहता है, ज्यादातर किसान इसी समय अवधि में चुकंदर की खेती करते हैं। इस समय भूमि ठंडी और मौसम का माहौल उचित रहता है। खेत तैयारी के समय उचित कीटनाशक और प्राकृतिक खाद का उपयोग करें। हल की सहायता से खेत को तैयार करके खुरपा या खुर्पेटी के उपयोग से चुकंदर की बुवाई करना सही रहता है। बीज की उचित गहराई और दूरी के अनुसार बीज को अच्छे से मिट्टी में दबा देना चाहिए, ज्यादातर किसान क्यारियां के ऊपर बीज को गिरते हैं।

सिंचाई

सिंचाई का अनुमान मिट्टी की गुणवत्ता, मौसम एवं बुवाई का समय आदि पर निर्भर करता है। इसके अलावा पौधों की वृद्धि पर भी सिंचाई निर्भर करती है। सिंचाई को उचित अंतराल पर करें ताकि भूमि में पानी जमा ना हो और पौधों को पानी की आवश्यकता पूरी करने के लिए उचित समय मिल सके। चुकंदर की फसल (beet crop) में आप अलग-अलग विधि के द्वारा सिंचाई कर सकते हो जैसे कि स्प्रिंकलर, बूंद सिंचाई या फिर धोरों में पानी छोड़कर भी आप सिंचाई कर सकते हो, यह सभी बुवाई के क्षेत्र पर निर्भर करता है। जब भी आप फसल में सिंचाई करें, तो सुबह या शाम के वक्त करनी चाहिए,

खाद एवं उर्वरक

अच्छी उत्पादकता के लिए फसल में खाद एक अहम भूमिका निभाता है। बुवाई से पूर्व और बुवाई के पहले खाद की बहुत आवश्यकता होती है।  पहली जुताई के समय गोबर खाद का उपयोग करें, उसके बाद फसल में बुवाई के बाद कार्बन, पोटेशियम, नाइट्रोजन आदि खादों का उपयोग कर सकते हैं। खाद को नियमित अंतराल पर देना आवश्यक है। चुकंदर की खेती में उर्वरक में मुख्यतः कम्पोस्ट, जीवामृत, या रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कर सकते हैं।

निराई गुड़ाई

वैसे तो चुकंदर की खेती में ज्यादा निराई गुड़ाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है, परंतु फिर भी अधिक खरपतवार की स्थिति में आपको समय-समय पर इसकी निराई गुड़ाई करते रहना चाहिए, खरपतवार हटाने के लिए आप रासायनिक उर्वरकों का भी प्रयोग कर सकते हैं।

फसल में रोग और उनकी रोकथाम

चुकंदर की खेती में जो प्रमुख रोग हैं, उनकी सूची हमने नीचे दी है। इन रोगों के उपचारों को ध्यान से देखना है क्योंकि यही रोग चुकंदर की खेती में  अक्सर देखने को मिलते हैं।

1). ब्लाइट (Fosparium, Alternaria):

  • फसल में इस रोग के प्रकोप से बचाने के लिए सिंचाई का अंतराल बढ़ाये और पौधों को अच्छे से तैयार करें।
  • जल भराव की स्थिति उत्पन्न ना होने दे एवं नियमित सिंचाई करे
  • रोग ग्रस्त चुकंदर के पत्तों को तोड़ दें

2). डेड लीफ (डेड लीफ बीटल):

इस रोग से बचने के लिए बुवाई से पूर्व अच्छी किस्मों का चयन करें और रोग ग्रसित पत्तियों को हटा दें

3). डॉवी मिल्ड्यू (ओइडियम):

यदि फसल में आपको यह रोग दिखाई देता है, तो रोग ग्रस्त पौधों को उखाड़कर फेक दें और पौधों के बीच में पर्याप्त दूरी बनाए तथा समय-समय पर खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग करें परंतु मात्रा अधिक नहीं होनी चाहिए।

4). रिंग रोट (फिटोफ्थोरा):

इस रोग के उपचार हेतु समय पर एवं उचित खाद उर्वरकों का प्रयोग करें तथा पानी भराव की स्थिति को कम करें।

कटाई / तोड़ाई

चुकंदर की कटाई उसकी ग्रोथ एवं समय पर निर्भर करती है। जैसे ही आपको लगे कि चुकंदर बड़े होने लग गए हैं। चुकंदर को ऊपाड़ कर एवं अच्छे से धोकर बाजार में बेचने के लिए चले जाएं

FAQ

Q.1 चुकंदर की खेती का सही समय क्या है?

चुकंदर की खेती के लिए सही समय अक्टूबर से नवंबर महीने या फिर फरवरी से अप्रैल के बीच का समय सबसे बेहतर है।

Q.2 एक हेक्टेयर क्षेत्र में कितने बीज की आवश्यकता होती है?

चुकंदर की खेती के लिए एक हेक्टर क्षेत्र में लगभग 14 से 15 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है और एक एकड़ में 8 से 10 किलोग्राम.

Q.3 चुकंदर की फसल कितने समय में तैयार होती है?

सामान्यतः चुकंदर की फसल को तैयार होने में 55 से 60 दोनों का समय लगता है। यह समय अवधि ज्यादा या कम भी हो सकती है, यह सब मौसम एवं क्षेत्र पर निर्भर करता है।

Q.4 चुकंदर की कटाई कब करें?

चुकंदर की कटाई आप प्रत्येक 6 से 7 सप्ताह के अंतराल  पर कर सकते हो.

Q.5 चुकंदर का वानस्पतिक नाम?

चुकंदर का वानस्पतिक नाम Beta vulgaris Linn. (बीटा वल्गेरिस) है।

Kunal Bibhuti

My name is Kunal Bibhuti, and I am the founder and writer of CASINDIA. Here, on this website, I write articles on government schemes, postal services, and bank schemes for all of you. I have been in the field of blogging for 8 years, and in these eight years, I have closely observed government schemes. Now, I share my experiences and knowledge with all of you. You can contact me via email.

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