gavava farming

अमरूद की फसल बागवानी के एक महत्वपूर्ण अंग है इसकी खेती भारत में एक बड़े स्तर पर की जाती है अमरूद में भरपूर मात्रा में पौष्टिकता होती है। यह एक बहुउपयोगिता वाला फल है। इसमें विटामिन सी की प्रचुर मात्रा पाई जाती है और इसका उपयोग जैम, जेली, नेक्टर आदि बनाने में किया जाता है।

इसकी खेती (guava farming) कई प्रकार की मिट्टी और भिन्न जलवायु में की जा सकती है। जाड़े के मौसम में इसकी खेती अत्यधिक की जाती है तथा इस समय इसकी कीमत सस्ती होती है एवं लोग इसे गरीबों का सेब भी कहते हैं। अमरूद स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण फल है, इसमें विटामिन सी, विटामिन बी, विटामिन ए आदि भी पाए जाते हैं और इसमें चुना, फास्फोरस, आयरन आदि की मात्रा भरपूर होती है।

अमरूद का इतिहास

अमरूद को अंग्रेजी भाषा में Guava के नाम से जाना जाता है। इसको भारत के अलावा उत्तरी और मध्य अमेरिका में भी उगाया जाता है, अमरूद का इतिहास बहुत पुराना है, परंतु यह सिद्ध करना कठीन है की इसकी उत्पत्ति कहां और कब हुई थी। परंतु कई सबूतों के आधार पर यह माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति मध्य अमेरिका के किसी क्षेत्र में हुई थी।

इसके अलावा भारत में भी guava farming in india के परिणाम मिलते हैं महाभारत और रामायण जैसे प्राचीन ग्रंथो में भी अमरूद के उल्लेख मिलते हैं, इसे भारतीय ग्रंथों में “फलम्” नाम से जाना जाता था। अमरूद को इसके सीडियम ग्वायवा वैज्ञानिक नाम से जाना जाता है एवं यह मिटसी कुल का पादप है।

भारत में अमरूद की खेती guava farming in india

वैसे तो अमरूद की उत्पत्ति अमेरिका के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में हुई है। परंतु यह भारत की जलवायु से इतना घुल मिल गया है कि इसकी खेती सर्वाधिक भारत में की जाती है। इसके अलावा guava farming का भारत में आगमन लगभग 17वीं शताब्दी में हुआ था। यह सहिष्ण होने के कारण इसके पौधे को हम किसी भी मिट्टी में उगा सकते हैं और जाड़े के मौसम में इसकी खेती सर्वाधिक होने के कारण यह अधिक सस्ता प्राप्त होता है। इसलिए इसे भारत में गरीबों के फल या सेब के नाम से भी जाना जाता है।

अमरूद वैसे तो हर किसी मौसम में उगाया जा सकता है, परंतु भारत में किसान इसकी खेती (guava farming) गर्मी के क्षेत्र में जैसे की पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान आदि। में सर्वाधिक की जाती ह

खेत की तैयारी

अमरूद की खेती (guava farming) करने के लिए खेत की तैयारी करना बहुत आवश्यक है, इसके लिए आपको सर्वप्रथम खेत की दो बार तिरछी जुताई करके खेत को अच्छे से तैयार करना है। जुताई से पहले आप प्राकृतिक खाद जैसे कि गोबर खाद का उपयोग भी कर सकते हैं। जिससे फसल अच्छी हो। खेती करने के लिए 15°C से 30°C तापमान वाले इलाकों का चयन करें।

उपयुक्त मिट्टी

  • अमरूद की फसल एक सख्त फसल है, इसकी खेती (guava farming) के लिए हर तरह की मिट्टी उपयुक्त रहती है। हालांकि इसके लिए तापमान 15°C से 30°C तक होना चाहिए।
  • अमरूद की खेती (guava farming) हल्की से लेकर भारी और कम जल निकास वाली मिट्टी में भी करी जा सकती है।
  • अमरूद की खेती करने के लिए मिट्टी का pH मान5 से 7.5pH तक होना चाहिए।
  • अमरूद की अच्छी पैदावार के लिए अच्छी जल निकास, रेतीली चिकनी और गहरे तल वाली मिट्टी उपयुक्त रहती है।

मौसम एवं जलवायु

अमरूद की खेती (guava farming) 100 सेंटीमीटर वर्षा वाले इलाकों में की जाती है। इसकी खेती के लिए तापमान 15°C से 30°C के मध्य होना चाहिए

बीज बुवाई के लिए तापमान 15-20°C या फिर 25-30°C तक हो सकता है। इसके अलावा गर्मी एवं जाड़े के मौसम में भी इसकी खेती करी जा सकती है।

बीज की मात्रा

अमरूद की बुवाई के लिए बीजों की मात्रा उपयुक्त भूमि गुणवत्ता, पौधों की आवश्यक दूरी, और प्रकृति के अनुसार जलवायु आदि कारकों पर निर्भर करती है।

  • सामान्यतः बिजाई के लिए प्रति एकड़ क्षेत्र में 400 से 500 ग्राम अमरूद के बीजों की आवश्यकता होती है।
  • यह मात्र भूमि जलवायु के आधार पर बदल सकती है।
  • यदि आप एक बड़े क्षेत्र और व्यापार के लिए अमरूद की खेती करते हो, तो इसके लिए कृषि विशेषज्ञों की सलाह लेना आवश्यक है, जिससे आपकी पैदावार में बढ़ोतरी हो।

अमरूद की उन्नत किस्मे

अच्छी पैदावार और अधिक उत्पादन के लिए अमरूद की उन्नत किस्मों का चयन करना बहुत आवश्यक है। उन्नत किस्में वह होती है, जो उचित मौसम एवं जलवायु के हिसाब से उत्पादन में सहायक होती है। नीचे हमने अमरूद की कुछ मुख्य और उन्नत किस्मों के बारे में जानकारी प्रदान की है।

  • पंजाब गुलाबी (Punjab Pink):  इस किस्म के फलों का आकार बड़ा और गहरे रंग का होता है और गर्मियों में इसकी फसल  सुनहरी पीले रंग की होती है। यह लाल गुद्दे वाले अमरुद होते हैं। जिसमें सुगंध का भरमार होता है और इन अमरूदो में लगभग 10.5 से 12% TSS होता है और इसके एक पेड़ से लगभग 155 किलो अमरूद प्राप्त होते हैं।।
  • इलाहाबाद सफेदा (Allahbad Safeda):  इस किस्म के फल नर्म एवं गोल आकार के होते हैं तथा यह छोटे कद के पौधे होते हैं। यह सफेद गुद्दे वाले अमरुद होते हैं और इनमें लगभग 10 से 12% TSS की मात्रा पाई जाती है।
  • अर्का अमूल्य (Arka Amulya):  इस किस्म के एक पौधे से 144 किलोग्राम तक फल प्राप्त होते हैं और यह बड़े आकार और नरम सफेद गुद्दे वाले फल होते हैं। इसमें TSS की मात्रा 9.3 से 10.01% होती है।
  • सरदार (Sardar): यह छोटे कद वाली फसल है और इसका गुद्दा क्रीम रंग का होता है। इसके एक पौधे से 130 से 155 किलोग्राम तक फल प्राप्त होते हैं
  • पंजाब सफेदा (Punjab Safeda): इस किस्म का गुद्दा क्रीमी और सफेद रंग का होता है और यह खट्टे होते हैं, जो लगभग 0.62 प्रतिशत है
  • पंजाब किरण (Punjab Kiran): अमरूद की इस किस्म में लगभग 12.3 प्रतिशत शुगर होती है और इनके गुद्दे गुलाबी रंग के होते हैं। इनमें खट्टेपन की मात्रा 0.44% होती है। इनके बीज छोटे और नरम होते हैं। इसके अलावा Shweta, Nigiski, Punjab Soft आदि भी अमरूद की प्रमुख एवं उन्नत किस्में है।

बुवाई का समय और विधि

अमरूद की अधिकतर फसले फरवरी से मार्च या अगस्त से सितंबर महीने के बीच बोई जाती है। जिससे उनकी पैदावार में बहुत ज्यादा वृद्धि होती है और अमरूद की खेती करने के लिए इन मौसम की जलवायु उचित रहती है।

बुवाई की विधि:-

अमरूद की बुवाई करने के लिए पौधे के बीच का फासला 6×5 मीटर होना चाहिए और यदि आप पौधे को वर्गाकार शेप में लगते हो, तो पौधे से पौधे का फासला 7 मीटर रखें और इसके अलावा प्रति एकड़ पौधों की मात्रा 132 पौधे रखें।

बीज बुआई के समय बीज को 25 सेंटीमीटर की गहराई पर बोया जाना चाहिए।

अमरूद की खेती (guava farming) के लिए आप डायरेक्ट नर्सरी से भी पौधे खरीद कर ला सकते हैं या फिर खुद भी नर्सरी में पौधे को तैयार कर सकते हैं। पौधों की उचित वृद्धि के बाद खेतों में रोपाई कर दी जाती है।

सिंचाई

अमरूद की फसल में पहली सिंचाई पौधों की बुवाई के तुरंत बात करें, उसके बाद लगभग तीन दिनों के इंतजार के पश्चात पौधों में सिंचाई करें। दो सिंचाई होने के बाद मिट्टी और मौसम के हिसाब से आपको सिंचाई करनी चाहिए, जिसके लिए आप कृषि विशेषज्ञों की सलाह भी ले सकते हैं।

यदि आप अमरूद की खेती गर्मियों के मौसम में करते हो, तो हर सप्ताह आपको सिंचाई करने की आवश्यकता है। इसके अलावा सर्दियों में आप महीने में 2 से 3 बार सिंचाई कर सकते हैं और यदि आपके अमरूद के पौधे पर फूल आ गए हैं, तो इसमें ज्यादा सिंचाई करने की आवश्यकता नहीं होती है। क्योंकि ज्यादा सिंचाई करने पर फूल गिरने लग जाते हैं।

खाद एवं उर्वरक

अमरूद के बागों में पहले 3 साल तक 10-20 किलोग्राम गोबर खाद प्रति एकड़ के हिसाब से 150-200 ग्राम यूरिया खाद, 500-1500 ग्राम “SSP” , 100-400 ग्राम MOP डालें।

उसके बाद 4 से 6 साल तक खाद की मात्रा बढ़ाकर 25-40 किलोग्राम गोबर खाद प्रति एकड़ के हिसाब से, 300-600 ग्राम यूरिया खाद, 1500-2000 ग्राम “SSP”, 600-1000 ग्राम MOP उसके बाद खाद की थोड़ी-थोड़ी मात्रा बढ़ते रहिए।

निराई गुड़ाई

अमरूद की अच्छी पैदावार और सही विकास के लिए समय-समय पर खरपतवार नियंत्रण बहुत आवश्यक है। जब पौधे छोटे होते हैं, तो इसमें नियमित निराई गुड़ाई करना आवश्यक होता है।

पौधे बड़े हो जाने के बाद पता नहीं चलता है की फसल में खरपतवार का प्रभाव है या नहीं इसके लिए आपको मार्च, जुलाई और सितंबर महीने में ग्रामोक्सोन 6 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करना है।

उसके बाद जब खरपतवार का अंकुरण हो जाए तो उसमें गलाईफोसेट (glyphosate) 1.6 लीटर को 200 लीटर पानी में मिलाकर फसल में छिड़काव करें और जब 15 से 20 सेंटीमीटर तक खरपतवार की वृद्धि हो जाए, तो प्रति एकड़ (guava farming in 1 acre) के हिसाब से फसल में छिड़काव कर दें।

फसल में रोग और उनकी रोकथाम

अमरूद की फसल में हानिकारक कीट, मिली बग, अमरूद का शाख का कीट, चेपा, बीमारियां और रोकथाम, एंथ्राक्नोस या मुरझाना, आदि प्रमुख रोगों का प्रकोप देखने को मिलता है। जिनकी समय पर रोकथाम करना बहुत आवश्यक है ‌।

  1. इन सब प्रमुख रोगों की रोकथाम के लिए समय पर बीज बुवाई करें एवं उन्नत किस्मों का चयन करें।
  2. नियमित रूप से पौधों की सक्षीमा करके फसल में होने वाले रोगों एवं कीटों के प्रकोप का पता लगाए और उचित उपचार करें।
  3. प्राकृतिक शत्रुओं का उपयोग कर उपचार करें जैसे की नेमाटोड्स के खिलाफ फफूंद, लेसर बी, और इंटरक्रोपिंग आदि
  4. जल प्रबंधन की उचित व्यवस्था रखें।
  5. अधिक से अधिक प्राकृतिक उपचार को अपनाएं जैसे कि नीम का तेल, नीम की पत्तियों का गोल आदि का उपयोग करके फसल में छिड़काव करें।

कटाई / तोड़ाई

अमरूद की तुड़ाई करने के लिए उचित तापमान 20-25°C से 18-22°C के मध्य होना चाहिए, इसके अलावा अमरूद के पौधों की समय-समय पर पर कटाई-छटाई भी करते रहिए, जो टहनियां सुख जाए उनको तोड़कर हटा दें, ताकि उनकी जगह नवीन टहनियां आ सके।

बीजाई के 2 से 3 साल बाद अमरूद के पौधों पर फल आना शुरू हो जाते हैं और यह फल धीरे-धीरे बड़े हो जाते हैं। जैसे ही आपको लगे कि फल हल्के पीले रंग के होने लगे हैं। उस समय अमरूद के फलों को तोड़कर बाजार में बेचने के लिए तैयार रहें।

FAQ

Q1. अमरूद का पौधा कितने सालों में फल देने लगता है?

Ans- अमरूद का फल लगभग 2 से 3 सालों में फल देना शुरू हो जाते हैं, उसके बाद प्रत्येक पौधे से आप 30-40 किग्रा पौधों को प्राप्त कर सकते हैं।

Q2. 1 एकड़ में अमरूद के कितने पौधों की आवश्यकता है?

Ans- एक एकड़ में अमरूद guava farming in 1 acre के लगभग 100 से 120 पौधों की आवश्यकता होती है।

Q3. अमरूद के पौधों को जल्दी बड़ा कैसे करें?

Ans- अमरूद के पौधों को जल्दी बड़ा करने के लिए पौधों की जड़ों के चारों ओर गुड़ाई करके उसमें प्राकृतिक गोबर खाद डालें और सिंचाई कर दें।

Q4. अमरूद की सबसे अच्छी किस्म कौन सी है?

Ans- जब भी अमरूद की सबसे अच्छी किस्म के बारे में बात की जाती है, तो उसमें पंत प्रभात (pant prabhat) का नाम सबसे पहले आता है।

Q5. कितने सालों तक हम अमरुद से फल प्राप्त कर सकते हैं?

Ans- अमरूद के एक पौधे से आप लगभग 5 से 6 सालों तक फलों की प्राप्ति कर सकते हैं।

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