भारत में गन्ना एक प्रमुख व्यावसायिक फसल है। कई प्रदेशों के किसान गन्ने की खेती (sugar cane farming) सफलतापूर्वक कर अच्छी कमाई कर रहे हैं। गन्ने की खेती देश में बेहद ही व्यापक रूप से की जाती है। इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि करीब 1 लाख से भी ज्यादा लोगों को इसकी खेती से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलता है। गन्ने की सहायता से कई उत्पादों को तैयार किया जाता है, जिसमें गुड, शक्कर और शराब शामिल है। जलवायु परिवर्तन से भी इसकी फसल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, इसलिए इसे एक सुरक्षित खेती भी माना गया है। आइए nflspice.com के इस खास आर्टिकल में हम आपको बताते हैं कि गन्ने की खेती कैसे करते हैं। गन्ने की फसल करते समय आपको कौन सी खाद-उर्वरक मिलना चाहिए। फसल में होने वाले रोगों की रोकथाम कैसे की जाती है। इसके अलावा भी गन्ने की खेती से सम्बंधित एनी जानकारी लेख में दी गयी है।
गन्ने का इतिहास
वैदिक काल से ही गन्ने की खेती (sugar cane farming) की जा रही है। सर्वप्रथम गन्ने की खेती दक्षिण प्रशांत क्षेत्र के न्यू गिनी द्वीप पर हुई थी। इसके बाद धीरे-धीरे यह अन्य द्वीपों पर होने लगी। इसके पश्चात फिलीपींस, इंडोनेशिया और उत्तर भारत में भी गन्ने की खेती होना प्रारंभ हो गई। चीन में गन्ना भारत से 800 ईसा पूर्व में पहुंचा था। कहा जाता है कि गन्ने का मूल स्थान भारत ही था, क्योंकि देश के कई प्राचीन ग्रंथो में गन्ने और इसे तैयार करने का जिक्र किया गया है। प्राचीन समय से ही भारत में गन्ने का उपयोग गुड़ बनाने के लिए किया जा रहा है। 18वीं शताब्दी में दक्षिणी अमेरिका, हिंद महासागर और प्रशांत द्वीप के देशों ने भी गन्ने की खेती को करना प्रारंभ कर दिया। आज अधिकतर देशों में गन्ने की खेती की जा रही है।
भारत में गन्ने की खेती (उत्पादन और सबसे ज्यादा कहां)
भारत के कई राज्यों में गन्ने की खेती (sugar cane farming in india) होती है। गन्ना उत्पादन में भारत का दूसरा स्थान है। पहले स्थान पर ब्राज़ील है, जहाँ हर वर्ष करीब 768 मिलियन टन गन्ने का उत्पादन किया जाता है। भारत और ब्राजील के अलावा क्यूबा में भी गन्ने का उत्पादन काफी अच्छा होता है। भारत में गन्ना उत्पादन वाले राज्यों की बात करें तो सबसे उपर उत्तर प्रदेश का नाम आता है, जो हर वर्ष गन्ने के उत्पादन में पहला स्थान हासिल करता है। इसके पश्चात् कर्नाटक और महाराष्ट्र में भी गन्ने का उत्पादन अच्छी मात्रा में होता है।
खेत की तैयारी
गन्ने की फसल के लिए वसंत काल का समय सबसे बेहतर माना जाता है। इसकी खेती करने के लिए आपको कई सारी बातों का ध्यान रखना होता है। गन्ने की खेती करने से पूर्व सबसे पहले आपको खेत की तैयारी करनी होती है। किस प्रकार से आपको खेत तैयार करना है, इसके बारे में आपको स्टेप बाय स्टेप प्रक्रिया में बताया गया है।
- सबसे पहले आपको खेत की पहली जुताई करनी है, इसके लिए आप मिट्टी पलटने वाले हल इस्तेमाल करें। ध्यान रहे की पहली जुताई गहरी करें।
- पहली जुताई करने के पश्चात् आपको दो-तीन बार देशी हल या कल्टीवेटर की मदद से जुताई करना है।
- अब अपने खेत के आकार अनुसार पुरानी गोबर की खाद को डालें, ध्यान रहे की गोबर की खाद एक से दो साल पुरानी होनी चाहिए।
- अब आपको खेत की दो से तीन बार तिरछी जुताई करना है। इसके बाद खाद, मिट्टी में अच्छी तरह से मिल जाएगी।
- अगली स्टेप में आपको हल्का सा पानी खेत में छिड़कना होगा, जिससे की मिट्टी नम हो जाएगी।
- जब दो-तीन दिन बाद खेत की मिट्टी की ऊपरी सतह सूखने लगे तो आप रोटावेटर की सहायता से जुताई कर दें।
- इसके पश्चात आप खेत को समतल कर दें।
- यदि आप वसंत ऋतु में गन्ने की खेती कर रहे हैं तो 75 सेमी और शरद ऋतु में 90 सेंटीमीटर की दूरी पर रिजन से 20 सेंटीमीटर गहरी नाली तैयार करें।
- इस तरह से गन्ने की खेती के लिए आपका खेत तैयार हो जाएगा।
गन्ने की फसल हेतु उपयुक्त मिट्टी
किसी भी फसल को बोने से पहले आपको उसकी उपयुक्त मिट्टी के बारे में जानकारी जरूर होनी चाहिए। गन्ने की खेती (sugar cane farming) के लिए दोमट मिट्टी, काली मिट्टी और पीली मिट्टी को अच्छा माना गया है। दोमट मिट्टी में जल निकासी अच्छी होती है, ध्यान रहे कि इसका पीएच मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। इसके अलावा जलोढ़ मिट्टी व लावा मिट्टी को भी गन्ने की खेती के लिए अच्छा बताया गया है।
मौसम एवं जलवायु
गन्ने की खेती लंबी अवधि में होती है, ऐसे में इसके लिए जलवायु और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है। गन्ने की खेती के लिए 45 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा और 15 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान उपयुक्त नहीं माना गया है। इसके लिए 20 से 26 डिग्री सेल्सियस तापमान अच्छा होता है। वहीँ 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान गन्ने की खेती के लिए आदर्श माना जाता है। गन्ने की बढ़वार हेतु 32 से 37 डिग्री सेल्सियस का तापमान काफी अच्छा होता है।
बीज की मात्रा
बीज रोपण के लिए भूमि के अनुसार बीजों की मात्रा क्या होनी चाहिए, इसकी जानकारी भी आपको अच्छी तरह से होनी चाहिए। जब आप गन्ने की खेती करते हैं तो इसके लिए आप बीज की मात्रा 1.5 से 2 टन प्रति हेक्टेयर रखें।
गन्ने की उन्नत किस्मे
गन्ने की कई सारी उन्नत किस्में होती हैं, राज्य की जलवायु व मौसम के अनुसार इन्हें रोपित किया जाता है। गन्ने की उन्नत किस्म से सम्बंधित विस्तृत जानकारी आप नीचे पढ़ सकते हैं।
- COVC-99463
- COLK-09204
- COPB-94
- UP (COA-11321)
- Srimukhi (COA-11321)
- Ikshu 4 COLK-11206
- Ikshu 5 COLK-11203
- CO-06022
- Baahubali (CCPF-0517)
- Charchika (COOR-10346)
1). सीओवीसी-99463
- गन्ने की इस ख़ास किस्म को अधिकतर कर्नाटक राज्य में उगाया जाता है।
- इस किस्म की उपज क्षमता प्रति एकड़ 70-80 टन है।
- गुड निर्माण के लिए इस किस्म को अच्छा माना गया है।
- नमी दबाव स्थितियों के लिए उपयुक्त है।
2). सीओएलके-09204
- पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश एवं पश्चिमी क्षेत्र में गन्ने की इस किस्म को अधिक उगाया जाता है।
- इस किस्म की उपज क्षमता प्रति एकड़ 80-90 टन है।
- सिंचित एवं जलभराव स्थिति के लिए उपयुक्त है।
3). सीओपीबी-94
- पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र एवं उत्तर प्रदेश के उत्तरी तथा पश्चिमी क्षेत्र में इसे अधिक उगाया जाता है।
- वसंत ऋतु में रोपण के लिए यह उपयुक्त किस्म है।
- इस किस्म की उपज क्षमता प्रति एकड़ 84-87 टन है।
4). यूपी (सीओए-11321)
- पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल एवं असम में यह किस्म ज्यादा उगाई जाती है।
- सिंचित, सामान्य उर्वरता स्तर के लिए यह किस्म उपयुक्त मानी गई है।
- इस किस्म की उपज क्षमता प्रति एकड़74 टन है।
5). श्रीमुखी (सीओए-11321)
- गन्ने की इस किस्म को आंध्रप्रदेश में ज्यादा उगाया जाता है।
- सीमित सिंचाई, पछेती रोपण, बारानी, जलभराव और लाल सड़न रोग संवेदनशील क्षेत्रों हेतु इस किस्म को अच्छा माना गया है।
- इस किस्म की उपज क्षमता प्रति एकड़31 टन
6). इक्षु 4 सीओएलके-11206
- पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, राजस्थान, उत्तरप्रदेश के मध्य एवं पश्चिमी क्षेत्र में यह किस्म अधिक उगाई जाती है।
- यह किस्म सिंचित रोपण के लिए उपयुक्त होती है।
- इस किस्म की उपज क्षमता प्रति एकड़50 टन होती है।
7). इक्षु 5 सीओएलके-11203
- पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश के मध्य एवं पश्चिमी क्षेत्र में इस अधिक उगाया जाता है।
- इसकी प्रति एकड़ उपज क्षमता 81-97 टन होती है।
- सिंचित रोपण के लिए इस किस्म को उपयुक्त माना गया है।
8). सीओ-06022
- तमिलनाडु और पुड्डुचेरी की पारिस्थिति के लिए यह किस्म काफी अनुकूल है।
- इस किस्म को प्रायद्वीपीय क्षेत्र की सामान्य स्थितियों तथा सूखा संवेदनशील क्षेत्रों के लिए उपयुक्त माना गया है।
- इस किस्म की प्रति एकड़ उपज क्षमता 105 टन के आस-पास है।
9). बाहुबली (सीसीएपफ-0517)
- अधिकतर इस किस्म को कर्नाटक में उगाया जाता है।
- यह किस्म दक्षिण कर्नाटक के सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है।
- इसकी उपज क्षमता 200 से 225 टन प्रति एकड़ है।
10). चारचिका (सीओओआर-10346)
- ओडिशा में गन्ने की इस किस्म को ज्यादा उगाया जाता है।
- यह किस्म गैर-सड़न, सिंचित ऊपरी भूमि और मध्यम भूमि के लिए उपयुक्त मानी गई है।
- इसकी उपज क्षमता 100 टन प्रति हैक्टर है।
बुवाई का समय और विधि
गन्ने की फसल हेतु बुवाई शरद, वसंत और ग्रीष्म ऋतु में की जा सकती है। शरद कालीन गन्ने की बुवाई में पैदावार अच्छी होती है। गन्ने की फसल के लिए बुवाई फरवरी से मार्च के बीच की जाती है। यदि आप अच्छी पैदावार चाहते हैं तो शरदकालीन गन्ने की बुवाई 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच करें। शरद ऋतू में बुवाई करने से 10 से 12 महीने में फसल तैयार हो जाती है। ग्रीष्मकालीन और वसंतकालीन बुवाई की अपेक्षा शरदकालीन गन्ने की पैदावार काफी ज्यादा होती है।
गन्ना बुवाई की विधि
- यदि आपको गन्ने की फसल (sugar cane farming in india) बोने जा रहे हैं तो इसे सपाट व फैरो विधि से बुवाई कर सकते हैं। खेत तैयार करने के पश्चात आपको 75 से 90 सेंटीमीटर की दूरी पर गहरे कुंड निकाल देना है। यदि आपकी जमीन उपजाऊ अधिक उपजाऊ है तो पंक्ति से पंक्ति की दूरी 90 सेंटीमीटर व कम उपजाऊ होने की स्थिति में 75 सेंटीमीटर की दूरी रखें।
- कीटों की रोकथाम के लिए आप कुंड में कीटनाशक डाल दें। वहीँ ऊपर से गन्ने के टुकड़े को तिरछा रख दें और फिर इन्हें मिट्टी से ढक दें।
- यदि आपके क्षेत्र की मिट्टी चिकनी है तो आप सुखी मिट्टी में बुवाई करें। सुखी मिटटी है तो 75 से 90 सेंटीमीटर की दूरी पर गहरे कुंड बनाए, इसके बाद उनमें उर्वरक व भूमि उपचार के लिए औषधि को डालें। अब गन्ने के टुकड़ों को तिरछा रख दें और पाटा करने के तुरंत बाद ही सिंचाई कर दें।
सिंचाई
बुवाई होने के 12 से 14 दिन पश्चात आपको सिंचाई करनी होती है। यदि मिट्टी की नमी कम होती जा रही है तो आप पहली सिंचाई के 15 दिन बाद दूसरी सिंचाई कर सकते हैं। गर्मी के सीजन में आपको 15 से 20 दिन के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए। जबकि बारिश में 20 दिन तक बारिश न होने पर सिंचाई करें। चिकनी मिट्टी होने की स्थिति में आपको सुखी मिट्टी में ही बुवाई करनी चाहिए, ऐसे में आपको बुवाई के बाद पाटा करें और तुरंत ही सिंचाई कर दें। इसके 15 दिन बाद आपको दूसरी सिंचाई करनी चाहिए, इससे अंकुरण की प्रक्रिया तेजी से होती है। ध्यान रहे की सिंचाई के लिए आप ड्रिप स्प्रिंकल का इस्तेमाल करें। इससे कम मात्रा में पानी होने पर भी आप अच्छे से सिंचाई कर सकते हैं। साथ ही फसलों को भी बराबर मात्रा में पानी वितरण होता है।
खाद एवं उर्वरक
अच्छी गुणवत्ता वाली गन्ने की फसल के लिए आपको खाद और उर्वरक की आवश्यकता होगी। गन्ने की फसल को नाइट्रोजन, कैल्शियम व फास्फोरस जैसे पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। गन्ने की खेती हेतु अंतिम जुताई से पूर्व आपको 20 टन सड़ी हुई गोबर की खाद को खेत में अच्छी तरह से मिलाना चाहिए। आप गन्ने के खेतों में जैविक खाद का भी प्रयोग कर सकते हैं। खाद के अलावा गाने को उर्वरक भी देना जरूरी होता है। मौसम के अनुसार उर्वरक दिए जाते हैं। शरदकालीन बिवाई करने के लिए नाइट्रोजन की मात्रा को चार बराबर भागों में बांटे। वसंतकालीन बुवाऊ हेतु नाइट्रोजन की कुल मात्रा को तीन बराबर भागों में विभाजित करें। गन्ने के अच्छे उत्पादन के लिए आपको प्रति एकड़ 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 35 किलोग्राम फास्फोरस और 30 किलोग्राम पोटेशियम की आवश्यकता होगी।
निराई–गुड़ाई
गन्ने की फसल के दौरान कई अवांछित पौधे खेत में उग जाते हैं, ऐसे में आपको निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। इस दौरान आप अवांछित पौधे को हटा दें। यह पौधे गन्ने की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। 25 से 30 दिनों के बाद ही गन्ने के खेत में खरपतवार दिखने लगता है। ऐसे में आपको फसल की बुवाई के एक-दो हफ्ते बाद गुड़ाई करना चाहिए, इसे अंधी गुड़ाई कहा जाता है। गन्ने की निराई-गुड़ाई करने के लिए आप ट्रैक्टर से चलने वाले टाइन टाइप कल्टीवेटर का उपयोग कर सकते हैं। इस कल्टीवेटर से गुड़ाई का कार्य अच्छी तरह से होता है। निराई-गुड़ाई की प्रक्रिया से खेत में हवा का संचार भी अच्छा बना रहता है। इससे पौधों की जड़ों का विकास तेजी से होता है और जमीन पर पकड़ भी अच्छे से बनती है।
फसल में रोग और उनकी रोकथाम
- पोक्काबोइंग रोग
- गन्ने का लाल सड़न रोग
- विल्ट या उकठा रोग
- स्मट या कंडवा रोग
- गन्ने का पेड़ी कुंठन रोग
- गन्ने का लाल धारी रोग
- ग्रासी शूट ऑफ शुगरकेन या घसैला रोग
गन्ने की फसल में लगे कीटों व रोगों की रोकथाम
- ग्रीष्मकालीन में गहरी जुताई करें।
- बुवाई के दौरान स्वस्थ्य बीजों का चयन करें।
- गन्ने की फसल को रोगों और कीटों से बचने के लिए आपको ट्राइकोडर्मा कल्चर का इस्तेमाल करना चाहिए।
- जब आप गन्ने की बुवाई करें, उस समय मिट्टी में 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बोरेक्स का छिड़काव करना चाहिए।
- गन्ने की बुवाई के समय मिट्टी में 15 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से ट्राइकोडर्मा कल्चर का छिड़काव करें।
- गन्ने के जो हिस्से प्रभावित हो गए हैं, उन्हें काटकर अलग कर देना चाहिए।
- ट्राइकोडर्मा कल्चर का छिड़काव गन्ने की बुवाई से पहले और बाद में भी करना चाहिए।
गन्ने की कटाई
गन्ने की फसल (sugarcane crop in india) की कटाई कब करना चाहिए, इसके बारे में भी आपको अच्छी जानकारी होनी चाहिए। 10 से 18 महीने के बीच गन्ने की फसल तैयार हो जाती है। ऐसे में आपको कटाई से पूर्व उसमें सुक्रोज की मात्रा की जांच करनी है, जिस समय गन्नों में सुक्रोज की मात्रा सबसे ज्यादा होती है, उस समय उनकी कटाई का सही समय आ जाता है। सुक्रोज की मात्रा को रिफ़्लेक्टरोमीटर की मदद से माप सकते हैं। इसके अलावा जब गन्ने की ऊपरी पत्तियों में हल्का सा पीलापन दिखाई देने लगे तो समझ लेना चाहिए कि गन्ने की फसल कटाई के लिए पक चुकी है। आप गन्ने की कटाई के लिए हार्वेस्टर का इस्तेमाल कर सकते हैं। इस मशीन की मदद से कम समय में ही गन्ने की कटाई हो जाती है।
FAQ-
Q.1 गाने में लाल सड़न रोग क्यों होता है?
अक्सर गन्ने की फसल में लाल सड़न फंगस लगती है, जोकि कोलेटोट्राइकम फाल्कैटम के कारण होती है। यह गन्ने की पत्ती और उसके डंठल को प्रभावित करती है।
Q.2 गन्ने की सबसे अधिक पैदावार करने वाला देश कौनसा है?
गन्ने की दबसे अधिक पैदावार बाजील में होती है। हर वर्ष यहाँ 768 मिलियन टन गन्ने का उत्पादन होता है। दूसरे स्थान पर भारत का नाम आता है।
Q.3 गन्ने में कौनसे रोग होते हैं?
गन्ने में होने वाले रोग:- पोक्काबोइंग रोग, गन्ने का लाल सड़न रोग, विल्ट या उकठा रोग, स्मट या कंडवा रोग, गन्ने का पेड़ी कुंठन रोग, गन्ने का लाल धारी रोग, ग्रासी शूट ऑफ शुगरकेन या घसैला रोग